देवी मंदिर हिंदी में:-
हिंदी चंडी पाथ कक्षा:-
‘अहमकारा सेनापती’
इस वर्ग में स्वामीजी बताते हैं कि सेनापति (जनरल्स) अहमकर (अहंकार) की सेना में कौन हैं।
ये ऐसे जनक हैं जिन्हें ईश्वरीय माता ने हमें अहंभाव से मुक्त करने के लिए हत्या कीया हैं।
चंडी पाठ का अध्ययन करने और हिंदी समझने वालों के लिए यह वर्ग बहुत अच्छा है।
‘स्वामी सत्यानंद सरस्वती’ और ‘श्री माँ’ भारत में अपनी 2016 की ग्रीष्मकालीन यात्रा के दौरान तत्त्व ज्ञान पर एक कक्षा देते हैं।
हिंदी समझने वालों के लिए और सिद्धांतों के ज्ञान में रुचि रखने वाले लोग इन कक्षाओं का आनंद लेंते हैं।
उनमें निहित अवधारणा का हमारे द्वारा की गई साधना का सीधा और व्यावहारिक अनुप्रयोग हैं।
हिंदी तत्त्व ज्ञान:-
हम कौन हैं?
‘श्री माँ’ का आश्रम आपके हृदय जितना विशाल है।
‘स्वामी सत्यानन्द सरस्वती’ के साथ, श्री माँ पूजा की विधि और उसका अर्थ सिखाती हैं।
श्री माँ और स्वमीजी पूजा की तान्त्रिक परम्परा के अनुसार और ध्यान के द्वारा यह सिखाते हैं, कि प्रत्येक घर ईश्वर का मन्दिर है।
श्री माँ का आश्रम दुनिया भर के उन साधकों के लिए घर है जो आत्म बोध की तालाश को अपना लक्ष्य मानते हैं।
गुरु मार्ग दर्षण की प्रेरणा और दोष-हीन कर्म का उदाहरण है। जहाँ भी पूर्ण– मिलाप ईश्वर से है, पूर्ण शिक्षा और श्रेष्ट समझ है, वहाँ गुरु की उपस्थिती होती है।
पूजा उस कार्य को कहते हैं जो आदर पूर्ण, ध्यान देकर, निष्कपट और भक्ति पूर्ण व्यवहार के साथ किया जाता है।
ज्ञान गुरुकी ओर से शिष्य की ओर बहता है।
शिष्य गुरु की शिक्षा की ओर ध्यान देकर पूजा करना सीखता है। गुरु को आदर देने के लिए शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए। शिष्य गुरु का उच्चित सम्मान उनकी शिक्षा के अनुसार जी कर देता है।
सम्मान की वस्तु के साथ जुड़ जाना ही श्रेष्टतम सम्मान है।
इसलिए शिष्य का लक्ष्य गुरु के उदाहरणों को अनुसरण ऐसे करना चाहिएं कि यह पता न लगे कि कौन गुरु है और कौन शिष्य।
ध्यान को केन्द्रित करने के अभ्यास को साधना कहते है। साधना क्षेत्र मे नए साधक यह समझने लगते हैं कि ध्यान को केन्द्रित करना दैनिक जीवन का अंग है।
प्यार, आदर, पूजा, सेवा और ध्यान पूर्वक काम से हमारा जीवन अधिक उपयोगी बनता है।
हमारा धर्म मत और मिशण:-
हम एसे भगवान में विश्वास करते हैं जो सर्वव्यापी, अनन्त हैं और कण-कण मे रहते हैं। विशेष रूप से हर मानव के हृदय में।
यह देवता साधकों मे प्रेम, आनन्द, सत्भाव, ज्ञान और सब प्राणीयों के प्रती आदर जगाता है। प्रत्येक शरीर ईश्वर का मन्दिर है।
मानव धर्म सब प्राणीयों की सेवा करके ईश्वर को सम्मान देना है और एकागृत भक्ति से ईश्वर को प्राप्त करने की चेष्टा करता है।
देवी मन्दिर का मुख्य उद्देश्य पूजा करने के लिए प्रेरणा देना है। हमारा लक्ष्य यह है कि हम आप में इच्छा जगाएं कि आप साधु और ऋिषीओं का उदाहरण अपनाऐं। ये लोग केवल प्राचीन काल में हि नहीं रहते थे। परन्तु वर्तमान में भी उपस्थित हैं और यह संस्कृती आज भी जीवित है।
ऐसे महापुरुष हमे, ‘श्री माँ’ और ‘श्री स्वामी सत्यानन्द सरस्वतीजी’ के रूप में दिखाई देते है।
इनके उदाहरण के अनुसार अगर हम अपना जीवन बीताऐं तो हम भी दैविक स्वभाव के बन सकते हैं और अपना जीवन लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
हम भी भविष्य मे ऋिषीओं की तरह उदाहरण बन सकते हैं।
सनातन धर्म का शास्त्र अनन्त है और कभी भी पूर्ण नहीं होता है। हम सभ अपने-अपने जीवन के साथ उदाहरण प्रकाश कर सकते हैं।
हम क्या करते हैं?
सनातन धर्म आठ प्रकार के व्यवहार धार्मिक जीवन के लिए अनुकूल बताता है। ये व्यवहार “अचरा” कहलाते हैं।
वैष्णवाचार: वैष्णवाचार का अर्थ है अपनी प्रेरणा ढूँडना।
वेदिकाचार: वेदिकाचार का अर्थ है जिसे हम प्यार करते हैं उसके विषय में जानना।
शैवाचार: शैवाचार का अर्थ है जो हमे जानकारी मिली उसे उपयोग मे लाना।
वामाचार : वामाचार का अर्थ है “प्रेम पूर्वक व्यवहार,” जीवन मे हर कार्य निपुणता से करना।
दक्षिणचार : दक्षिणचार का अर्थ है “श्रेष्टतर माग,” अपने संसारिक कार्य करने के लिए आवश्यकता कम करें।
सिद्धान्ताचार : सिद्धान्ताचार का अर्थ है अपने आचरण को ग्रन्थों में बताये गये कार्यों को अनुकूल बनाना। ये व्यवहार के सात हैं पूजापाठ, होम, संगीत नृत्य, प्रवचन, अर्पण।
योगाचार : योगाचार का अर्थ है “व्यवहार में तालमेल”।
कलाचार : कलाचार का अर्थ है “व्यवहार में उत्तमता,” चाहे साधना में बिना हिले बैटना हो या किसी लक्ष्य की प्राप्ति हो, जीवन की प्रत्येक स्थिती मे भावना समान रहना चाहिएं।